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हिर॑ण्यरूपमु॒षसो॒ व्यु॑ष्टा॒वयः॑स्थूण॒मुदि॑ता॒ सूर्य॑स्य। आ रो॑हथो वरुण मित्र॒ गर्त॒मत॑श्चक्षाथे॒ अदि॑तिं॒ दितिं॑ च ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

hiraṇyarūpam uṣaso vyuṣṭāv ayaḥsthūṇam uditā sūryasya | ā rohatho varuṇa mitra gartam ataś cakṣāthe aditiṁ ditiṁ ca ||

पद पाठ

हिर॑ण्यऽरूपम्। उ॒षसः॑। विऽउ॑ष्टौ। अयः॑ऽस्थूणम्। उत्ऽइ॑ता। सूर्य॑स्य। आ। रो॒ह॒थः॒। व॒रु॒ण॒। मि॒त्र॒। गर्त॑म्। अतः॑। च॒क्षा॒थे॒ इति॑। अदि॑तिम्। दिति॑म्। च॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:62» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:31» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मित्रावरुण के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मित्र) (वरुण) प्राण और उदान वायु के सदृश वर्त्तमान राजा और मन्त्रीजनो ! आप दोनों जैसे (सूर्य्यस्य) सूर्य्य के (उदिता) उदय में और (उषसः) प्रातःकाल के (व्युष्टौ) विशेष दाह वा निवास में (अयःस्थूणम्) सुवर्ण के खम्भे के सदृश (हिरण्यरूपम्) तेजःस्वरूप को (आ, रोहथः) आरोहण करते हैं, (अतः) इस कारण से (गर्त्तम्) गृह को अधिष्ठित हो के (अदितिम्) नहीं नष्ट होनेवाले कारण (दितिम्, च) और नाश होनेवाले कार्य्य का (चक्षाथे) उपदेश करते हैं, उन दोनों को हम लोग मिलें ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य के उदय होने पर अन्धकार निवृत्त होता और प्रकाश होता है, वैसे ही कार्य्य और कारणरूप विद्या के जाननेवाले राजा और मन्त्रीजन मित्र के सदृश वर्त्ताव करके दृढ़ न्याय का प्रचार करावें ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मित्रावरुणगुणानाह ॥

अन्वय:

हे मित्रवरुणद्वर्त्तमानौ राजामात्यौ ! युवां यथा सूर्य्यस्योदितोषसो व्युष्टौ हिरण्यरूपमयःस्थूणमारोहथोऽतो गर्त्तमधिष्ठायाऽदितिं दितिं च चक्षाथे तो वयं सङ्गच्छेमहि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यरूपम्) तेजःस्वरूपम् (उषसः) प्रातर्वेलायाः (व्युष्टौ) विशेषदाहे निवासे वा (अयःस्थूणम्) सुवर्णस्तम्भमिव (उदिता) उदये (सूर्य्यस्य) (आ) (रोहथः) (वरुण, मित्र) प्राणोदानाविव वर्त्तमानौ राजामात्यौ (गर्त्तम्) गृहम् (अतः) कारणात् (चक्षाथे) उपदिशथः (अदितिम्) अविनाशिकारणम् (दितिम्) नाशवत्कार्य्यम् (च) ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा सूर्य्योदयेऽन्धकारो निवर्त्तते प्रकाशः प्रवर्त्तते तथैव कार्य्यकारणात्मविद्याविदो राजाऽमात्या मित्रवद्वर्त्तित्वा दृढं न्यायं प्रचारयेयुः ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसा सूर्योदय झाल्यावर अंधार नष्ट होतो व प्रकाश पसरतो तसेच कार्य व कारणरूप विद्या जाणणारा राजा व मंत्री यांनी मित्राप्रमाणे वागून दृढ न्यायाचा प्रचार करावा. ॥ ८ ॥